Thursday, September 1, 2011

Hindi Poems for Kids

बागीचा

मेरे घर का है जो बागीचा,
थोड़ा ऊंचा थोड़ा नीचा.

हरी दूब का एक गलीचा,
बड़े जतन से जिसको सींचा.

एक आम का पेड़ खड़ा है,
जिसपर झूला बहुत बड़ा है.

जगह-जगह फूलों की क्यारी
मन को लगती बहुत ही प्यारी.

रंग-बिरंगे फूल महकते,
तितली उड़ती, पंछी चहकते.

खुश कर देता है सबका मन
यह मेरा सुन्दर सा उपवन.



स्कूल

रोज़ सुबह जब उठते हैं हम
सारे बच्चे नटखट;
नहा-धोकर, वर्दी पहनकर
स्कूल पहुँचते झटपट.

बहुत मज़ा आता है स्कूल में,
हो मित्रों से मेल;
थोड़ी-थोड़ी करें पढ़ाई,
थोड़ा-थोड़ा खेल.

क्लास में टीचर पढ़ा रही है,
पर हम करते दंगल;
गुस्सा होकर टीचर बोली,
"क्या समझा है जंगल?"

"जल्दी-जल्दी कर लो पढ़ाई,
वरना सज़ा मिलेगी;
सब कुछ देख रही हूँ,
कोई बदमाशी ने चलेगी."

पर टीचर की यह सख्ती भी
हमको लगती प्यारी;
यह फटकार ही हमें कराती
जीवन की तैयारी.

"स्कूल के दिन फिर न लौटेंगे",
सभी हमें समझाते;
मौज मना लो, और बिता लो
यह दिन हँसते-गाते!