... a haasya kavita for Meghna's school
केक बनाया मम्मी ने तो टपकी लार हमारी,
नज़रें घूमें स्टोर की तरफ बार- बार हमारी.
स्कूल से लौटे, दरवाज़े पर खुशबू ने आ घेरा,
जैसे पेस्ट्री शॉप ने नाक में लगा दिया हो डेरा.
झटपट हाथ धो पहुंचे टेबल पर टपकाते लार,
बेसब्री से कर रहे थे हम केक का इंतज़ार.
पर यह क्या? मम्मी तो लायी रोटी और तरकारी:
हाय मिटटी में मिला दी सब उम्मीद हमारी!
'केक कहाँ है?' हम चिल्लाए, 'चुप हो!' वह गुर्रायीं;
शाम की चाय पर आ रहे हैं मेरे दूर के भाई.
तब तक बैठो चुपचाप, क्योंकि केक तभी कटेगा;
उससे पहले यहाँ कोई फटका तो बहुत पिटेगा.
चले गए हम मुंह लटकाकर, बैठे आस लगाए,
जल्दी से आयें मामाजी, चाय पियें और जाएँ!
आ पहुंचे मेहमान तो निकली केक की सवारी;
देखि उसकी मस्त छटा तो लपकी जीभ हमारी.
'मेहमानों से पहले, खबरदार जो हाथ लगाया';
दबी ज़बान में मम्मी ने यह सख्ती से समझाया.
रह गए हम देखते, मामा के बेटे ने झपटा मारा,
'कितना स्वादिष्ट है', कह कर चट कर गया केक वह सारा!
1 comment:
Bahut badhiya cake tha :)
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