Thursday, February 24, 2011

Wafaa ...

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हमारे दरमियाँ ऐसा कोई रिश्ता नहीं था
तेरे शानों पे कोई छत नहीं थी
मेरे जिम्मे कोई आंगन नहीं था
कोई वादा तेरी ज़ंजीर-ऐ-पा बनने नहीं पाया
किसी इकरार ने मेरी कलाई को नहीं थामा
हवा-ऐ-दश्त की मानिंद तू आजाद था
रास्ते तेरी मर्ज़ी के तबे थे
मुझे भी अपनी तन्हाई पे
देखा जाये तो
पूरा तसर्रुफ़ था
मगर जब आज तू ने
रास्ता बदला
तो कुछ ऐसा लगा मुझ को
की जैसे तू ने मुझसे बेवफाई की

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