Sunday, March 27, 2011

ऊपर वाले की माया


खत्म हो गया होमवर्क मेरा, समय खेलने का आया;
'बैग लगा लो, जूते पोलिश करो,' मम्मी ने फ़रमाया।

'फल और दूध तैयार रखे हैं, खा पीकर के फिर जाना;
कहाँ जा रही हो, यह बता दो, रात से पहले लौट आना।'

उफ़्फ़! मम्मी को बता चुकी हूँ, पच्चीस बार अपना शिड्यूल;
बार-बार फिर भी पूछेंगी, जाने कैसे जाती भूल!

अबकि फिर से बता रही हूँ, सुन लो प्लीज़् देकर ध्यान;
पार्क नही जाते हैं क्योंकि मच्छर ले लेते हैं जान!

हर दिन अलग-अलग घर में सब साथी खेलने जाते हैं;
सभी के घर हफ्ते में एक-एक दिन डेरा जमाते हैं.

'बहुत सही है,' बोली मम्मी, 'यह तो मैंने माना है';
'पर यह कैसे तय करते हो, कब किसके घर जाना है?'

'यह तो ऊपर वाले पर निर्भर है,' मैंने खोला राज़;
पहुंचे हमारी टोली जहां पूजा, अरदास या हो नमाज़!'

सुन मम्मी को हुआ अचम्भा, और उनका सर चकराया;
देख के उनकी हैरानी फिर मैंने खुल के समझाया.

'जैसे सोमवार को आप शिवजी पर जल चढ़ाती हो;
खीर बनाती हो, हमारी मंडली को भी खिलाती हो.'

'मंगलवार रिंकी के पापा हनुमान व्रत रखते हैं;
वहीं खेलते हैं हम सब भी, मीठी बूंदी चखते हैं.'

'बुधवार राजू की दादी गणपति का भोग लगाती हैं,
बहुत स्वाद लड्डू चढ़ते हैं, हमें ज़रूर खिलाती हैं.'

'बृहस्पती को शीतल के घर साईं पूजा करते हैं;
फिर मिश्री, इलायची, मेवे से सब मुट्ठी भरते हैं.'

'शुक्रवार फैसल के घर जुम्मे की नमाज़ पढी जाती;
फिर आंटी हमको प्यार से लज़ीज़ बिरयानी हैं खिलाती.'

'शनिवार को अमनप्रीत की बीजी गुरद्वारे जाती हैं;
हमें भी मिलते खट्टे चने और कड़ा प्रसाद जो चढ़ाती हैं.'

'और रविवार को सन्डे मास से आकर मार्गरेट की मम्मी
जो पैनकेक्स खिलाती हैं, वो होते हैं कितने यम्मी!'

हंस-हंस कर तब लोटपोट हुईं मम्मी, बोलीं 'वाह उस्ताद!'
'पर चलो, इसी बहाने ऊपर वाले को करते हो याद!'

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